डिस्ट्रीब्यूटर्स के लिए एक सीख

*डिस्ट्रीब्यूटर्स के लिए एक सीख:-*

नियमित रूप से मीटिंग आने वाले एक डिस्ट्रिब्यूटर ने वहाँ आना अचानक बंद कर दिया। जब कुछ दिन बीत गए तो अपलाइन ने उसके घर जाने का सोचा। उस शाम बहुत सर्दी थी। अपलाइन  को वह डिस्ट्रिब्यूटर दहकती अँगीठी के सामने बैठा मिला, वह घर में अकेला था। उसने अपलाइन का स्वागत किया, अँगीठी के सामने रखी एक बड़ी सी कुर्सी पर बैठने का आग्रह किया, और उसके कुछ बोलने की प्रतीक्षा करने लगा।  अपलाइन कुर्सी पर आराम से बैठ तो गया पर बोला कुछ नहीं। कुछ देर बाद अपलाइन ने चिमटा उठाया और बड़ी सावधानी से एक बड़ा सा दहकता-चमकता अंगारा अँगीठी में से निकाला और उसे एक तरफ़ रख दिया। इसके बाद वह फिर कुर्सी पर आराम से बैठ गया, लेकिन बोला कुछ नहीं। वह डिस्ट्रिब्यूटर यह सब बस देखता रहा। उस अकेले अंगारे की चमक-दमक धीरे-धीरे कम होती चली गई और जल्दी ही वह बुझा-बुझा और ठंडा सा हो गया। अपलाइन के आने के समय हुए अभिवादन के अलावा किसी ने भी एक शब्द तक नहीं बोला था। चलने से पहले अपलाइन ने वह ठंडा और बुझा-बुझा कोयला उठाया और वापस आग में फेंक दिया, जिससे वह तुरंत ही आस-पास के जलते कोयलों के कारण रोशनी और गर्मी से फिर चमकने-दहकने लगा।


अपलाइन चलने के लिए जैसे ही उठा तो वह मेज़बान डिस्ट्रिब्यूटर बोला, “आपके आने का बहुत-बहुत धन्यवाद सर, विशेष रूप से इस अंगारे वाले उपदेश के लिए। मैं अगले रविवार से हर मीटिंग में आया करूँगा, कभी मिस नहीं करूगा।”

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