चरैवेति_चरैवेति

चरैवेति_चरैवेति


गोपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि -

परिमितं_भूतं_अपरिमितं_भव्यम् ।

भूत सीमित है, भविष्य असीमित है।

व्यतीत हो जाने के कारण भूतकाल तो सीमित होता है, उसकी सीमायें अब बढ़ नहीं सकती किन्तु भविष्य की संभावनाएं अनन्त हैं।

इसी को ध्यान में रखते हुए पुरुष को चलते रहना चाहिये, प्रगति पथ पर बढ़ते रहना चाहिये।

गति हीनता मृत्यु है, गतिशीलता जीवन है।

कोई व्यक्ति कितना ही विद्वान, अथवा योग्य क्यों न हो, यदि वह चलेगा नहीं, गति नहीं करेगा, कोई कर्म नहीं करेगा, प्रयास नहीं करेगा तो एक पग भी आगे नहीं बढ़ सकता, उन्नति नहीं कर सकता।

सुभाषितकार कहता है कि - चलती हुई 🐜 चींटी सैकड़ों योजन चली जाती है जबकि न चलता हुआ गरुड़ एक पग भी आगे नहीं जा सकता।

उद्योगी पुरुष ही ऐश्वर्य को प्राप्त करता है और उद्योगहिन का भाग्य बैठ जाता है।

इसलिए चलते रहिए.. चलते रहिए।

- मुनि मन्तव्य

हमेशा के लिए अपने सपने के साथ एक बड़ा हमेशा के लिए सोचें

WAD Entrepreneur
   शुभारंभ एक बेहतर भविष्य का!

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